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रस्मे दुनियाँ लग रही है भार अब / ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'

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रस्मे दुनियाँ लग रही है भार अब।
बोझ से लगने लगे त्यौहार अब।

जब मिले टिपिया लिया कुश्ती लड़े,
औपचारिक हो गए हैं यार अब।

थे कभी ननिहाल भी ददिहाल भी,
सिर्फ पत्नी रह गई परिवार अब।

पास बच्चे भी नहीं हैं बैठते,
ऑनलाइन है सभी का प्यार अब।

खेलते थे साथ में भाई बहन,
'ज्ञान' मिलना हो गया व्यवहार अब।