रस्मे वफ़ा के वास्ते हर सुख भुला दिया
मैंने तो जिंदगी का इक-इक पल लगा दिया।
इतनी भी इनायत तो मगर कम नहीं है दोस्त
गिन गिन के मेरी हर ख़ता तूने बता दिया।
फिर आखिरी समय पे क्या शिकवा गिला करूँ
अच्छा किया जो तुमने मुझे फिर दगा दिया।
इतना दिया है और क्या देती दिवानगी
चाहत को मेरी उसने इबादत बना दिया।
पल भर को अपने आँसुओं को रोक कर सनम
देखा तुम्हें जो खुश तो मैने मुस्करा दिया।