भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रस्साकशी / कन्हैयालाल मत्त
Kavita Kosh से
ज़ोर लगाओ, हेई सा !
हेई सा, भई, हेई सा !
सीना ताने रहो अकड़कर,
रस्सा दोनों ओर पकड़कर,
तिरछे पड़कर, कमर जकड़कर,
ज़ोर लगाओ, हेई सा !
हेई सा, भई, हेई सा !
खींचो-खींचो, ज़ोर लगाओ,
पैर गड़ाकर, पीठ अड़ाओ,
आड़ी-तिरछी चाल भिड़ाओ,
ज़ोर लगाओ, हेई सा !
हेई सा, भई, हेई सा !
रस्सा नहीं फिसलने पाए,
साथी नहीं बिचलने पाए,
जोश-खरोश न ढलने पाए,
ज़ोर लगाओ, हेई सा !
हेई सा, भई, हेई सा !
हुए पसीने से तर सारे,
सफल हुए सब दाँव हमारे,
इधर हमारे, उधर तुम्हारे,
ख़ुशी मनाओ, हेई सा !
ज़ोर लगाओ, हेई सा !
हेई सा, भई, हेई सा !