भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रस-प्रकृति / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्वकीया - दरस-परस दूरहु यदि च पर क संकुचित गात
लजवन्ती धनि वनस्पति रति वन - आङन कात।।38।।

परकीया - कमलिनि दिन पति रस हुलसि सौरभ भरित दिगन्त
लखि दूरंगत, भ्रमर लय उरसि विलस निशि हन्त!!39।।

वेशिनी - प्रात शिथिल, दिन मलिन, निशि विकसित, साँझहि झात
चान क चानी मन हुलस कुमुद वेशिनी स्यात।।40।।