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रस-प्रकृति / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
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स्वकीया - दरस-परस दूरहु यदि च पर क संकुचित गात
लजवन्ती धनि वनस्पति रति वन - आङन कात।।38।।
परकीया - कमलिनि दिन पति रस हुलसि सौरभ भरित दिगन्त
लखि दूरंगत, भ्रमर लय उरसि विलस निशि हन्त!!39।।
वेशिनी - प्रात शिथिल, दिन मलिन, निशि विकसित, साँझहि झात
चान क चानी मन हुलस कुमुद वेशिनी स्यात।।40।।