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रस भरे आम / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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रस भरे आम कितने मीठे।
पत्तों के नीचे लटके हैं।
आँखों में कैसे खटके हैं।
इन चिकने सुंदर आमों पर,
पीले रंग कैसे चटके हैं।
सब आने जाने वालों का,
यह पेड़ ध्यान बरबस खींचे।
रस भरे आम कितने मीठे।
मिल जाएँ आम यह बहुत कठिन।
पहरे का लठ बोले ठन-ठन।
रखवाला मूँछों वाला है,
मारेगा डंडे दस गिन-गिन।
सपने में ही हम चूस रहे,
बस खड़े-खड़े आँखें मीचे।
रस भरे आम कितने मीठे।
पापा के ठाठ निराले थे।
बचपन के दिन दिलवाले थे।
उन दिनों पके आमों पर तो,
यूं कभी न लगते ताले थे।
खुद बागवान ही भर देते,
थे उनके आमों से खींसे।
रस भरे आम कितने मीठे।