भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रहगुज़र / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब आप की मर्ज़ी है कि मिलें या न मिलें
हम थक चुके हैं शायद न मिलेंगे इसके बाद
कहिए कि न कहिए, सुनिए कि न सुनिए,
लिखा है हमने नाम तेरी रहगुज़र पे आज
बेचैन हवाओं ने ये मुझे आ के कहा है
वो हमसे मिलेंगे मगर ज़िंदगी के बाद।