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रहने दे इन को निर्जल / अज्ञेय

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 रहने दे इन को निर्जल ये प्यासी भी जी लेंगी-
युग-युग में स्नेह-ललायित पर पीड़ा भी पी लेंगी!
अपनी वेदना मिटा लूँ? उन का वरदान अमर है!
जी अपना हलका कर लूँ? वह उन की स्मृति का घर है!

सर्वथा वृथा ही तूने ओ काल! इन्हें ललकारा।
तू तृण-सा बह जाए यदि फूटे भी आँसू धारा।
आँखें मधु माँग रही हैं, पर पीड़ा भी पी लेंगी;
रहने दे इन को निर्जल ये प्यासी भी जो लेंगी!

1936