भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रहने दो ये तकलीफ़ें हसीन लगती है / ज्योति रीता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रहने दो यह तकलीफ़ें हसीन लगतीं हैं
साथ जीना
जुझना-लड़ना
फिर परे कर
उम्मीदों से हाथ मिलाना
खुशगवार करता है

जाने दो
मत रोको
मत टोको
मत उलझाओ बेवजह की बातों में
विस्मय होगा तुम्हें
चुप रहकर विस्तार मिलता है मुझे

पँक्तियों में मत खड़े करो
मत करो कोई विलाप
यह समय है विविधताओं से भरा
हर मोड़ एक नया रास्ता
अंतिम छोर मंज़िल
जीतना है ग़र
तो चलने दो निरंतर

भींचकर मुट्ठी
क्या मिन्नत कर पाओगे
खोल दो मुट्ठी
मुक्त कर दो
मलाल ना रहे कोई
कभी जी ना सका
खुद के शर्तों पर कभी
मंत्रणा जो भी करना है
कर अभी
आगे बढ़कर गले लगा ले ज़िंदगी
मत सोच
तकलीफ़ कम या ज़्यादा

रहने दो ये तकलीफें
हसीन लगतीं हैं॥