भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रहबरों का आज देखिये मुल्क में अजीब हाल है / हनीफ़ राही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रहबरों का आज देखिये मुल्क में अजीब हाल है
आईनों की फ़िक्र ही नहीं पत्थरों की देख भाल है

सिर्फ इस जहाँ में दोस्तों इसलिए वो मालामाल है
उसको आज तक पता नहीं क्या हराम क्या हलाल है

बद्दुआएं आपकी सभी मेरे हक़ में बन गयी ख़ुशी
मुझ पे जलने वाले दोस्तों और आगे क्या ख़्याल है

हर क़दम-पे बेपनाह ग़म हर नफ़स नये-नये सितम
जी रहा हूँ ऐसे दौर में ये भी कोई कम कमाल है

पहले जैसा क़त्लो ख़ून है अब भी तख़्तो-ताज के लिए
नफ़रतें हैं आज का सबक़ और फ़साद इनकी चाल है

हम्द क्या है नात क्या ग़ज़ल क्या मेरा शऊर क्या अमल
है अताए रहमते तमाम फ़ज़ले-रब्बे ज़ुल-जलाल है