बन्द-मुँह
तुम बैठे पाँच हज़ार साल
बिना निकाले एक धीमी आवाज़ भी।
आते गए जुलूस, प्रदर्शनकारियों ने पूछे सवाल,
तुमने दिए जवाब
अपनी भूरी आँखें बिना झपकाए,
बन्द होठों ने कभी न की बात।
युगों से बिल्ली की मानिन्द झुके-बैठे तुम
जो जानते हो उस पर नहीं की एक टर्र भी।
मैं उनमें से एक हूँ जो जानता है वह सब
जो तुम जानते हो और मैं रखता हूँ अपने सवाल :
मुझे पता है तुम्हारे जवाब का।
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा 'एतेश'