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रहा तुझ सा कोई न रहनुमा तो ख़याल तेरी तरफ़ गया / नफ़ीस परवेज़
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रहा तुझ-सा कोई न रहनुमा तो ख़याल तेरी तरफ़ गया
हुआ गर्दिशों से जो सामना तो ख़याल तेरी तरफ़ गया
कई दर्द फिर से उभर गए कई अक्स नजरों में आ गए
कहीं रूबरु हुआ आइना तो ख़याल तेरी तरफ़ गया
तुझे ज़ेहनो दिल से निकाल के मेरा दिन गुज़र तो गया मगर
हुई शाम और जो दिन ढला तो ख़याल तेरी तरफ़ गया
यूँ तो गुल खिले हैं बहार में कई रूप के कई रंग के
कहीं महकी-महकी चली हवा तो ख़याल तेरी तरफ़ गया
जो न बन सकी उसी बात का मुझे अब भी रंजो मलाल है
चला ज़िक्र जो किसी ख़्वाब का तो ख़याल तेरी तरफ़ गया