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रहा मैं सदा सब्ज़ मंज़र का आदी / श्याम कश्यप बेचैन

रहा मैं सदा सब्ज़ मंज़र का आदी
मुझे खींचते हैं पहाड़ और वादी

हमें ऐ सुबह बूँद भर ओस देकर
न करवाओ दरियादिली की मुनादी

उसे अपनी ग़लती का अहसास तो है
नहीं बोल कर मैंने उसको सज़ा दी

जो आया यहाँ उसको जाना पडे़गा
हरेक चीज़ है इस जहाँ की मियादी