भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रहा मैं सदा सब्ज़ मंज़र का आदी / श्याम कश्यप बेचैन
Kavita Kosh से
रहा मैं सदा सब्ज़ मंज़र का आदी
मुझे खींचते हैं पहाड़ और वादी
हमें ऐ सुबह बूँद भर ओस देकर
न करवाओ दरियादिली की मुनादी
उसे अपनी ग़लती का अहसास तो है
नहीं बोल कर मैंने उसको सज़ा दी
जो आया यहाँ उसको जाना पडे़गा
हरेक चीज़ है इस जहाँ की मियादी