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रहिये हमेशा कर्मरत यह कर्म ही तो धर्म है / रंजना वर्मा
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रहिये हमेशा कर्मरत यह कर्म ही तो धर्म है
संवाद होते हैं मधुर प्रतिकूल लेकिन कर्म है
संसार माया मोह का पहने कवच ऐसा खड़ा
है वेधना सम्भव नहीं कितना कठिन यह वर्म है
परवाह करता कौन है कोई दुखी हो या मरे
समझा कोई सकता नहीं दुनियाँ बड़ी बेशर्म है
तूफान हिंसा के उठे, दहशत दिशाओं में भरी
सुख शांति की क्या बात हो चलती हवा भी गर्म है
है योग्यता इनमें नहीं शिक्षा ग्रहण कोई करें
हर दण्ड पच जाता इन्हें मोटा बहुत ही चर्म है
ये मान या मद मोह विचलित कर उसे सकते नहीं
जिस मे बसे श्री राम रब व्यवहार उस का नर्म है
तज स्वार्थ पर उपकार रत रहता सुजन जो सर्वदा
वह साधु धार्मिक शुद्ध मन नित पालता सद्धर्म है