भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रहि-रहि याद आबै गांवोॅ केरोॅ हमरा / राकेश रवि

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रहि-रहि याद आबै गांवोॅ केरोॅ हमरा
गांवोॅ केरोॅ याद ऊ बुलाबै हो दादा

शहरोॅ के एक्को घड़ी सले रं लागै
गाँवोॅ केरोॅ याद ऊ सतावै हो दादा

केहनोॅ होतै खेत आरो खेतोॅ केरोॅ चैता
चिठियो लिखि कोय नै बतावै हो दादा

सोची-सोची कानै छियै कैन्हें गांव छोड़लां
अबकी जों जैबै तेॅ नै अैबै हो दादा

भेजै नै सदेशो कोय्यौ चिठियो नै भेजै
यही बात मनोॅ केॅ दुखाबै हो दादा

कारी-कारी गैया केॅ आरो कारी बछिया केॅ
लिखी भेजो कौने छै चराबै हो दादा

अभियो बगिचवा में कूकै होतै कोयली
मनोॅ में कुहु-कुहु आबै हो दादा

नहरोॅ के पानी कोन दिस बहै होतै
कौनें आपनोॅ खेतोॅ केॅ पटाबै हो दादा