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रहि-रहि याद आबै गांवोॅ केरोॅ हमरा / राकेश रवि
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रहि-रहि याद आबै गांवोॅ केरोॅ हमरा
गांवोॅ केरोॅ याद ऊ बुलाबै हो दादा
शहरोॅ के एक्को घड़ी सले रं लागै
गाँवोॅ केरोॅ याद ऊ सतावै हो दादा
केहनोॅ होतै खेत आरो खेतोॅ केरोॅ चैता
चिठियो लिखि कोय नै बतावै हो दादा
सोची-सोची कानै छियै कैन्हें गांव छोड़लां
अबकी जों जैबै तेॅ नै अैबै हो दादा
भेजै नै सदेशो कोय्यौ चिठियो नै भेजै
यही बात मनोॅ केॅ दुखाबै हो दादा
कारी-कारी गैया केॅ आरो कारी बछिया केॅ
लिखी भेजो कौने छै चराबै हो दादा
अभियो बगिचवा में कूकै होतै कोयली
मनोॅ में कुहु-कुहु आबै हो दादा
नहरोॅ के पानी कोन दिस बहै होतै
कौनें आपनोॅ खेतोॅ केॅ पटाबै हो दादा