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रहि नगीच मधुगीत लिखीं / सुभाष पाण्डेय
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रहि नगीच मधुगीत लिखीं।
दूबकोर पर ओस बूँद के
नवल सुकोमल प्रीत लिखीं।
टेसु ललाई अधरनि पसरल
भोर किरिनियाँ साटि गइल
अंग-अंग के रंग सुनहला
पूनम चन्दा बाँटि गइल
सुखद अम्हाउर परस गात के
सब पावन परतीत लिखीं।
अँखियाँ जस खंजन के पँखिया
चितवत चित्त पवित्र भइल
साँस सुगंधित सोत सरब जग
मँहकत पसरल इत्र भइल
हारल मन सरबस तहरे से
तबहूँ आपन जीत लिखीं।
मुखछवि जलपूरित सरवर में
खिलल गुलाबी लगे कमल
निरखत लुकवावत पलकन में
परम मधुर अनुभूति विमल
कोमलताई अंग अंग के
सोनकलश नवनीत लिखीं।
भरमत मन अझुरात छने छन
सहज पाइ बिसराम थमल
झुकल माथ, जुड़ि गइल हाथ अब
रमता एही ठाँव रमल
गुन गावत सझुरावत बानी
मनहर कथा पुनीत लिखीं।