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रही-मारै छै हिलोर / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो

रही-मारै छै हिलोर,
अँचरबा उड़ि लहराबै!

फागुन कटलै अन्हारि
ईंजोरिया पछिया बयरिया,
गम-गम गमकै झकोरि
गुजरिया आमोॅ के मँजरिया;
बड़ीखिनी आबै नित भोर
निगोड़ी बरजोर
कोयलिया शोर मचाबै!

बीतै नी रात परातो नी बीतै
बीतै उमेरिया;
भूली-भूली पड़ै सब बात
नजरिया हेरै डगरिया;
छन्ळैं-छन्हैं सूखै छै ठोर;
उमड़ि आबै लोर,
ननदिया दरदो नी पाबै!