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रहें जब भी अकेले हम तुम्हारी याद आती है / रंजना वर्मा
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रहें जब भी अकेले हम तुम्हारी याद आती है
घनी तनहाइयों में भी हमारे साथ होती है
समय के साथ ही दिल का हमारे दर्द गहराता
हमारी साँस भी अब आँधियों से होड़ करती है
कभी जब घेरते काली घटाओं के घने साये
तुम्हारी याद बन कर नीर आँखों से बरसती है
किसी भी तरह से मिलना हमारा अब नहीं मुमकिन
जहन्नुम में पड़े हैं हम तुम्हें जन्नत सुहाती है
नहीं है नींद आँखों मे मयस्सर सुख न कोई भी
तुम्हारी याद इस दिल से हमेशा ही गुजरती है
तुम्हारे शह्र की गलियाँ भरीं एहसास से अब भी
तुम्हारी खुशबुओं से अब भी वो बस्ती महकती है
चले आओ कभी तुम इस तरह मत लौट कर जाओ
शमा के साथ बिरहन आज भी लौ बन के जलती है