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रहेगी ज़िन्दगी में आख़िरश ये तीरगी कब तक / कविता सिंह

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रहेगी ज़िन्दगी में आख़िरश ये तीरगी कब तक
अता करते रहोगे तुम ग़मों की बानगी कब तक

कमाले हुस्न के जलवे निगाहे-नाज़ के फ़ित्ने
तेरी जादूगरी से बच सकेगी सादगी कब तक

बड़ी मुद्दत से तेरी दीद को आँखें ये प्यासी हैं
मुझे इतना बता दे तू मिटेगी तिश्नगी कब तक

सदाक़त के चरागों को ज़रा दिल में जला के रख
तग़ाफ़ुल से करेगा तू बता ये बन्दिगी कब तक

हुई जो शाम तो छाये ग़मों के आज फिर बादल
बचायेगी सफीना अब 'वफ़ा' का ज़िन्दगी कब तक