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रहेॅ इंजोरिया / संयुक्ता भारती
Kavita Kosh से
कुच्छू एन्होॅ करोॅ
कि जिन्दगी भोर बनेॅ
हर आफत रोॅ तोड़ बनेॅ
वक्त बदललै बदलोॅ भेष
रहेॅ इंजोरिया अंग प्रदेश ।
काज करोॅ एहनोॅ बढ़ियाँ
अंग केॅ अंग लगावे दुनियाँ
धरती हुलसेॅ जिनगी हुलसेॅ
ओराबेॅ भी सब्भे क्लेष
रहेॅ इंजोरिया अंग प्रदेश ।
छोड़ोॅ नै तोंय आपनोॅ थाथी
आय कहै छौं माय रोॅ छाती
गेलै बेरा गरब करै रोॅ
ऐलै बेराµकरोॅ नै कलेष
रहै इंजोरिया अंग प्रदेश ।
देखोॅ अब नै देर लगावोॅ
अंग-अंग सें अंग जगावोॅ
ई जिनगी के कोॅन भरोसोॅ
आय दिखै कल भेलोॅ शेष
रहै इंजोरिया अंग प्रदेश
गीत रचोॅ संगीत रचोॅ
बूढ़ोॅ तरी पर भीत रचोॅ
रोम-रोम फड़केॅ मानव के
रचो कवि जन ऊ संदेश्ष
रहेॅ इंजोरिया अंग प्रदेश ।