भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रहेॅ इंजोरिया / संयुक्ता भारती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुच्छू एन्होॅ करोॅ
कि जिन्दगी भोर बनेॅ
हर आफत रोॅ तोड़ बनेॅ
वक्त बदललै बदलोॅ भेष
रहेॅ इंजोरिया अंग प्रदेश ।

काज करोॅ एहनोॅ बढ़ियाँ
अंग केॅ अंग लगावे दुनियाँ
धरती हुलसेॅ जिनगी हुलसेॅ
ओराबेॅ भी सब्भे क्लेष
रहेॅ इंजोरिया अंग प्रदेश ।

छोड़ोॅ नै तोंय आपनोॅ थाथी
आय कहै छौं माय रोॅ छाती
गेलै बेरा गरब करै रोॅ
ऐलै बेराµकरोॅ नै कलेष
रहै इंजोरिया अंग प्रदेश ।

देखोॅ अब नै देर लगावोॅ
अंग-अंग सें अंग जगावोॅ
ई जिनगी के कोॅन भरोसोॅ
आय दिखै कल भेलोॅ शेष
रहै इंजोरिया अंग प्रदेश

गीत रचोॅ संगीत रचोॅ
बूढ़ोॅ तरी पर भीत रचोॅ
रोम-रोम फड़केॅ मानव के
रचो कवि जन ऊ संदेश्ष
रहेॅ इंजोरिया अंग प्रदेश ।