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रहो नज़र में सदा हमारी इसीलिये दिल मचल रहा है / रंजना वर्मा

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रहो नज़र में सदा हमारी इसीलिये दिल मचल रहा है
रखें तुम्हें ख़्वाब में सजा कर यही हमारा शग़ल रहा है

चली जो बागे सब जरा सी महक उठे देखो फूल सारे
न जाने है कौन बेरहम वो जो इन को ऐसे कुचल रहा है

तुम्हारी उल्फ़त की धूप में हम बहुत जले कब क़रार पाया
बसी है ख्वाबों में तेरी मूरत उसी से अब दिल बहल रहा है

हमारी आँखों मे ख़्वाब जितने सभी में बस तुम बसे हुए हो
समझ नहीं तुम ही इसको पाये इसी से आँसू निकल रहा है

करीब आ कर भी दूर रहना अजब तुम्हारी हैं ये अदायें
उसे समझना हुआ न आसां तुम्हारे मन मे जो चल रहा है

अजीज़ दिल को रहे हमेशा तुम्हारी उल्फ़त के चंद लम्हे
कहाँ लगा तैले बेवफ़ाई जो हाथ से सब फिसल रहा है

ये चश्मे नम बढ़ती बेक़रारी बने मुकद्दर नहीं किसी का
हमारी खातिर तो दिल तुम्हारा है अब भी वो ही जो कल रहा है

न जो बुरा चाहते किसी का उन्हीं की राहें हुईं कटीली
उगा था सूरज सुबह गगन में क्यो आज बेवक्त ढल रहा है

बड़ी ही मुश्किल से चल के आया चढ़ा मुसीबत के लाख पर्वत
कमाल है उस कदम का यारो जो गिरते गिरते संभल रहा है