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रहो सुदृढ़ हे ह्रदय वीर / मंजुला सक्सेना

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बादल जब छाये सूरज पर ,
अम्बर भी बरसाए पीर ,
 रहो अपितु दृढ , ह्रदय वीर,
विजय तुम्हारी है निश्चित .

बाद शरद के आता ग्रीष्म ,
हवा सदा ही लहर बनाती ,
बढ़ते आगे धूप -छाओं से ;
सतत बढ़ो फिर आगे वीर !

जीवन -कर्म जटिल निश्चित ही ,
और यहाँ के सुख भ्रम मात्र ,
मंजिल लगती दूर ,धुंधली सी ,
बढ़ो, चीर तम , ह्रदय वीर .
अपनी पूरी शक्ति सहित .

लेश कर्म भी न खोएगा ,न संघर्ष ,
आशाएं धूमिल हो चाहें शक्ति जाए ;
जन्मेंगे तुम से भविष्य के कर्ता धर्ता ,
रहो अतः फिर दृढ , ह्रदय वीर,
मंगल कर्म न जाते व्यर्थ .

भद्र और बुद्ध यद्यपि कम ,
वे ही पर बनते अधिनायक ,
जन साधारण देर से समझे ;
भ्रष्ट न हो और बढ़ते जाओ .

संग तुम्हारे सिद्ध अनेकों ,
संग तुम्हारे शक्ति मान ,
धन्य -मान तुम,महा आत्म हो ,
तुम्हे मिलें सारे आशीष !


स्वामी विवेकानंद द्वारा रचित मूल अंग्रेज़ी रचनाIf the sun by the cloud is hidden a bit,
If the welkin shows but gloom,
Still hold on yet a while, brave heart,
       The victory is sure to come.

No winter was but summer came behind,
Each hollow crests the wave,
They push each other in light and shade;
       Be steady then and brave.

The duties of life are sore indeed,
And its pleasures fleeting, vain,
The goal so shadowy seems and dim,
Yet plod on through the dark, brave heart,
      With all thy might and main.

Not a work will be lost, no struggle vain,
Though hopes be blighted, powers gone;
Of thy loins shall come the heirs to all,
Then hold on yet a while, brave soul,
      No good is e'er undone.

Though the good and the wise in life are few,
Yet theirs are the reins to lead,
The masses know but late the worth;
     Heed none and gently guide.

With thee are those who see afar,
With thee is the Lord of might,
All blessings pour on thee, great soul,
     To thee may all come right!