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रह गई / विजय वाते
Kavita Kosh से
जो कभी थी एक हकीकत अब कहानी रह गई
गोद बाकी के गणित की तर्जुमानी रह गई
जब ढाले रंगीन शीशों में तो हो रंगीन वो
यों गजल तो अब महज बेरंग पानी रह गई
शाहजादों के करिश्में और परियों की कथा
आज के बच्चों की जैसे बूढ़ी नानी रह गई
गर्दनें तारीफ़ में हर शेर पर हिलती रही
शेष केवल दाद में बस दुम हिलानी रह गई