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राई में सीप के भीतर जैसे गौहर रहता है / अजय अज्ञात
Kavita Kosh से
गहराई में सीप के भीतर जैसे गौहर रहता है
ऐसे ही अदना-सा शाइर मेरे अन्दर रहता है
दिन भर मुझको जीने पड़ते कितने ही किरदार यहाँ
दिनभर इन शानों पर जाने किस-किस का सर रहता है
मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे में जा कर ये मालूम हुआ
जिसको बाहर ढूंढ रहा हूँ मेरे भीतर रहता है
जाने मेरी क़िस्मत में क्या लिक्खा लिखने वाले ने
सुख के इक प्यादे से लड़ता ग़म का लश्कर रहता है
इन आँखों का खारा पानी ख़त्म नहीं होने पाता
शायद आँखों में पोशीदा एक समंदर रहता है