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राकेट उड़ा / जयप्रकाश भारती
Kavita Kosh से
राकेट उड़ा हवा में एक,
लाखों लोग रहे थे देख।
पहले खूब लगे चक्कर,
हुआ अचानक छू-मंतर।
जा पहुँचा चंदा के पास,
जहाँ न पानी, जहाँ न घास।
उलटे पाँव लौट आया,
साथ धूल-मिट्टी लाया!