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राख़ / जोस इमिलिओ पाचेको / राजेश चन्द्र
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राख़ नहीं करती
किसी से क्षमा-याचना
बस घुल जाती है वह
अनस्तित्व में,
एकाकार हो जाती है
गहन उदासी के साथ।
राख़ धुआँ है
जिसे छू सकते हो तुम,
आग ख़ुद एक सन्ताप है।
हमारी यह हवा
जो प्रज्ज्वलित हुई थी कभी,
अब नहीं धधकेगी
वह कभी फिर से।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र