रागनी 2 / सुमित सिंह धनखड़
राजा का फरमान पढ्या, एकदम उल्टा हटग्या
लेकै घोड़ा चाल पड्या, जा जंगल में डटग्या
1.
जंगल मैं तै खेल शिकार, दरवाजे पै आया था
कागज का फरमान लग्या, जब उपर की तरफ़ लखाया था
पहरेदार रोकण लागे, जिननै शीश तलक ना ठाया था
उल्ट पायाँ वह चाल पड्या, भोजन तक ना खाया था
सोचण लाग्या यो के होग्या, फेर तोल बात का पटग्या
राजा का फरमान पढ्या। ।
2.
जै कोए बालक गलती करदे, धौर बठा समझाते हैं
जै नहीं मानता फेर भी बालक, हंसीयाँ मैं धमकाते हैं
मेरी गेल्या जिसा जमाया, ना एसा ज़ोर जमाते हैं
राम बराबर रूप बताया, ना एसा ज़ुल्म कमाते हैं
12 साल की बाल उम्र सै, यो किसा बादल-सा फटग्या
राजा का फरमान पढ्या। ।
3.
इब आगे की राही टोहकै, उसी रस्ती पै चलणा सै
और कोए ना साथी दिखै, बस मालिक का शरणा सै
पेट खढा आटण की खातर, ठिक गुज़ारा करणा सै
सोचण लाग्या मन-मन मै, इब नहीं किसे तै डरणा सै
सूरज ढलते चाल पड्या, ऊपर तै चांदण घटग्या
राजा का फरमान पढ्या। ।
4.
छत्री का तै काम शिकार, खेलण का बताया
ठिक निशाना लाकै लक्ष्य, भेदण का बताया
सुमित सिंह कहै यो गावण का राह सेधण का बताया
मेरा दोष घरक्याँ नै, छंद टेकण का बताया
ईब तै देखी जागी जो होगी, नाम हरि का रटग्या
सुल्तान कवर चलते-चलते अगले दिन एक बाग़ में पहुँच जाता है जो कि केलागढ नगरी में था... उसने सोचा कि आराम किया जाए और घोड़ा बाँध दिया जाए और बाग़ की तरफ़ चलता है कैसे