रागनी 3 / सुमित सिंह धनखड़
करते करते विचार कवर नै, झट सोधी-सी आई
आगे-सी नै देखण लाग्या, एक देग्या बाग़ दिखाई
1.
चलते चलते हार लिया, एक बाग़ का दर्शन होग्या
शीली शीली बाल़ चालै, मन ही मन में खोग्या
हरे भरे बाग़ का दृश, चित्त बैरी नै मोहग्या
फेर आगी याद बात पाछली, कति भीतर-भीतर रोग्या
आराम खरण की सोच लेई, लिया हो लीह्खां की राही
करते करते विचार...
2.
चीं ची चीं ची चिड़िया बोलैं, पूरा शोर हो रह्या था
बागां के मैं घूमण लाग्या, मस्ती के म्हैं खो रह्या था
सर के उपर दुख व्यपता का, जबर भरोटा ढो रह्या था
बालक से पै ज़ुल्म करे, न्यू मन-मन मैं जंग झो रह्या था
चढ्या आलकस गात में सारे और आवण लगी जम्हाई
करते करते विचार...
3.
आगे-सी नै क़दम धरा, एक तल़ा निंगाह मैं पड़ग्या
न्यूं सोची चल पाणी पी ल्यूं, प्यास तै गात सिकुड़ग्या
गर्मी के मैं आवै पसीना, सारा बदन निचड़ग्या
राम का नाम लेकै न्हाया, फेर तला तै बाहर लकड़ग्या
दरखत नीचै लेट गया, कर सुल्तान समाई
करते करते विचार... ...
4.
सुमित सिंह की क़िस्मत माड़ी, दुख हुया दुनिया तै न्यारा
नौ करोड़ी का लाल बाप नै, रेते के मैं डारया
लेटे लेटे सुल्तान कवर का, मन-सा होग्या भारया
करवट लेकै रोवण लाग्या, पड़ै नैनां तै पाणी खारया
आसुंआं गैल्या ना बेरा लाग्या कद नींद कसूती आई.।
करते करते विचार।