रागनी 4 / विजेन्द्र सिंह 'फौजी'
कारगिल की कानवाई की मैं बात बतादूँ सारी
ले कै चले गाडी हो ओ लगी डयूटी म्हारी
बाडी-ब्राहमणा युनिट हमारी चले वहाँ तै आठ बजे
पहली-पहली कानवाई थी नहा धो कै न खुब सजे
कारगिल म्हं जाणा सोच्या आवैं उड़े बहोत मजे-2
दस बजे ऊधमपुर म्हं जा कै न आराम किया
सुबह ऊठ कै बजरंगी का सच्चे मन तै नाम लिया
गाडी ऊपर कपड़ा मारा सुझबुझ तै काम लिया-2
होया उजाला छ: बजगे-2 करी श्रीनगर की तैयारी
बारहा बजे बनिहाल म्हं जा कै खाणा खाया था
खाणा खाते चाल पड़े आगै कदम बढ़ाया था
सात बजे श्रीनगर म्हं जा कै बिस्तर लाया था-2
सुबह उठ कै देख्या भाईयो लाग रही थी छड़ी
आठ बजे श्रीनगर तै गाडी म्हारी चाल पड़ी
सोना मार्ग तै पहल्याँ ना रस्ते म्हं किते होई खड़ी-2
खाणा खाते चाल पड़े-2 ना हिम्मत हामनै हारी
रात नै हाम गुमरी पंहोचे टेम रहया ना खाणे का
चार बजे हुक्म मिल्या भाई कारगिल म्हं जाणे का
हाथ मुहं धो कै चाल पड़े टेम मिल्या ना नहाणे का-2
कारगिल म्हं पहुँच गए एक बजे दिन म्हं
सही सलामत पहुँच गए खुशी घणी थी मन म्हं
नहा धो कै आराम किया नहीं रहे उल्झन म्हं-2
अगले दिन युनिट वापसी की-2 करली हामनै तैयारी
हाम राशन पाणी गोलाबारूद बोर्डर पै पहुँचाते रै
गोली बरसो बम्ब पाटो ना उल्टा कदम हटाते रै
दुश्मन तै ना भय मानै हाम डयूटी सही पुगाते रै-2
हरियाणे म्हं जिला भिवानी डोहकी मेरा गाम सै
दादरी तहसील मेरी विजेन्द्र सिंह मेरा नाम सै
जाट के घर म्हं जन्म लिया म्हारा जमींदारा काम सै-2
जो सच्चे मन तै सुमरन करता-2 उंकी रक्षा करै मुरारी
तर्ज-दो दिन का जीणा दुनिया म्हं है उन मान जरा-सा-भजन