रागनी 6 / सुमित सिंह धनखड़
चादरा हटाते एकदम, दिन-सा लिकड़ आया...
शान देखते आया तिवाला,
मुश्किल तै फेर होंश संभाला
चाला-सा होग्या एक दम, ना मुंह तक पाटण पाया...
जैसे मिला हो कई श्राप,
तारैं ख़ुद आकै भगवन आप
अभिशाप ख़त्म हुया एकदम, अहल्या नै मिलगी काया
फेर हूर की तबीयत खिलगी,
जणु जोट आप आण कै मिलगी
कीसी घाल-सी घलगी एकदम, इसा परदेशी मन भाया
सुमित सिंह जणु बुलावा काल दे,
ज्यान झट झोली में घाल दे
न्याहलदे होगी त्यार एक दम, सब ईश्वर की माया...
निहालदे के पूछने पर सुल्तान कवर सारी बात व आपबीती बताता है, फिर भी वह निहालदे सुल्तान के साथ चलने की जिद्द करती है कि कुछ दिन यही ठहरो और मैनै तो आपको अपना पति मानने का दृढ संकल्प कर लिया है... अब चाहे कुछ भी हो जाए... तो सुल्तान निहालदे को समझाता है कि मेरी ख़ुद पेट भरने कि आस नहीं है... तुझे कहाँ ले जाऊंगा और तंग होकर क्या समझाता है