रागनी 7 / सुमित सिंह धनखड़
मेरा हो रहा सै बणवास, पड़गी दुख व्यप्ता रै खास,
ना सै पेट भरण की आस, तनै कित गैल ले चालूं॥
1.
नादान उम्र सै ज्ञान नहीं था, मैं खेल कै आया
नर नारी सब कठ्ठे होकै आगे, मेरा बाप सिखाया
मेरे पिता नै छो में आकै, यो फरमान लिखाया
12 साल का दिया दसौटा, मैं न्यू घर तै टाया
गया कालजा पाट, दुख गया हृदय नै चाट, उम्र भी सै घाट, बता क्यूकर दुख ठालूं ...
2.
कर बज्र का हिया मैं, उड़े तै लिकड़गया
मतलब का संसार देख लिया, हर कोए पास पकड़ग्या
दुख व्यपता कि बेड़ी में, कसूता जकड़ग्या
इब तू मेरे गल में घल रही, भाग दूणा आकड़ग्या
तू कहै चलूंगी गैल, तनै चाहवैंगे फैल,
मेरै लागैं सै सैल, क्यूकर गात बचाल्यूं...
3.
तू रंग महलां की रहणे आली ना बणां का बेरा सै
मतन्या ज़्यादा फैल खिंडावै, आगै झेरा सै
सुल्तान कवर तै भाग घणा, दखे माड़ा ले रहा सै
म्हारी दोनूआं की उम्र सै याणी, बता आगै के राह सै
क्यूं कर रही सै झमेला, तनै इबै खाया ना खेला,
मनै जाण दे अकेला, कितै जा धक्के खालूं...
सुमित सिंह की बात मान, ना तै दुख पावैगी
जाथर थोड़ा बोझ घणा, तूं क्यूकर ठावैगी
ईंट चुबारै लागण आली, ख़ुद मोरी पै लावैगी
मनै ख़ुद टुकड़े की सासा सै, तू के खावैगी
उड़ै ना पावैं तात्ती तात्ती, तेरै ना बात समझ में आती,
फेर मेरी पाटैगी छात्ती, न्यू करकै मैं आपै तंग पालूं...
इतना समझाने पर भी वह निहालदे नहीं मानती और कहती है कि मैने मन ही मन में आपको पति मान लिया है और मैं आपके साथ चलूंगी और क्या कहती है