मुझे याद है तुम्हारी कही
और हाँ!
ठीक ही तो कहा था तुमने
कि प्रेम-अप्रेम
राग-विराग
मानस असंतुलन की अवस्थाएँ भर हैं
बस्स!
मन उसी की अनुगूँज दूर तक
सुनता रहा
गुनता रहा
जाने क्या-क्या बुनता रहा!
मुझे याद है तुम्हारी कही
और हाँ!
ठीक ही तो कहा था तुमने
कि प्रेम-अप्रेम
राग-विराग
मानस असंतुलन की अवस्थाएँ भर हैं
बस्स!
मन उसी की अनुगूँज दूर तक
सुनता रहा
गुनता रहा
जाने क्या-क्या बुनता रहा!