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राग कीन्हीं रंग कीन्हीं ओ कुसंग कीन्हों / महेन्द्र मिश्र
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राग कीन्हीं रंग कीन्हीं ओ कुसंग कीन्हों
चातुरी अनेक कीन्हीं लायो हाथ चोली में।
शास्त्र जो पुराण पढ़े भाषा देस देसन के,
विजय पत्र लियो जाइ देस-देस बोली में।
महल ओ अटारी तइयारी सब भाँति कीन्हों,
अइसे ही बितायो निसि बासन ठिठोली में।
द्विज महेन्द्र घोड़े रथ हाथिन के पीठ चढ़े
अन्त में चढ़ोगे आठ काठ की खटोली में।