भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राग कीन्हीं रंग कीन्हीं ओ कुसंग कीन्हों / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग कीन्हीं रंग कीन्हीं ओ कुसंग कीन्हों
चातुरी अनेक कीन्हीं लायो हाथ चोली में।
शास्त्र जो पुराण पढ़े भाषा देस देसन के,
विजय पत्र लियो जाइ देस-देस बोली में।
महल ओ अटारी तइयारी सब भाँति कीन्हों,
अइसे ही बितायो निसि बासन ठिठोली में।
द्विज महेन्द्र घोड़े रथ हाथिन के पीठ चढ़े
अन्त में चढ़ोगे आठ काठ की खटोली में।