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राग चले साथ राग के / केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’
Kavita Kosh से
अलग-अलग वृक्ष खड़े
अश्रु-हास और रुदन-गीत गिन रहे
एक लहर फूल से उठी
एक लहर कूल से उठी
लहर चली साथ लहर के
त्वरित और ठहर-ठहर के
अलग-अलग वृक्ष खड़े
ग्रीष्म, शरद के काल गिन रहे
एक आग खेत से उठी
एक आग रेत से उठी
आग जले साथ आग के
राग चले साथ राग के
अलग-अलग वृक्ष खड़े
ह्रास-वृद्धि और बैर-प्रीत गिन रहे
एक ज्वार आर से उठी
एक ज्वार पार से उठी
ज्वार चले साथ ज्वार के
तार बजे साथ तार के
अलग-अलग वृक्ष खड़े
जन्म-मरण और हार-जीत गिर रहे।