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राग निर्गुन / शशीधर

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षट्चक्र

आत्मा परमात्माको गुरु ज्ञान विचार ।।
षड्चक्र स्वास खेलाई ।।अभोग।।
लाल वण श्री गणेशजीको खोजि करो ।।
चतुरदल कमल में गणेशजीके बास ।।
एकहज्जार, छ सये क्षड्चक्र अजपको कह मैं नित तहाँ आए ।।षडचक्र ।।१।।
लाल वर्ण गणेशजीको ढुंडि ढुंडि पीताम्बर वर्ण
ब्रह्मजीको खोजि करो ।।
पीत वर्ण ब्रह्मजीको-अष्टदल कमलमें बास ।।
चार हज्जार तीन सहे, षडचक्रको करुं मै तहनित आस ।।षडचक्र।।२।।
पीताम्बर वर्ण ब्रह्मजीको ढुंडि ढुंडि नील वर्ण ।।
विष्णुजीको दश दल कमलम् वास ।।
चार हज्जार पाँच सहे अजप षडचक्रको करुँ मै तहाँ बास ।।षडचक्र।।३।।
नील वर्ण विष्णुको ढुंडि ढुंडि साधा वर्ण शीवजीको
खोजी करो ।।
द्वादश दल कमलमैं शीवजीको बास ।।
चार हज्जार पांचसहे जप षड्चक्रको करुँ मैं बास ।।षडचक्र।।४।।
साधा वर्ण शीवजो ढुंडि ढुंडि मै धुम्र वर्ण जीवात्मा
चैतन्य ब्रह्मजीको षोडसदल कमलमें चैतन्य ब्रह्मजीको बास ।।
एकाईस हज्जार छ सये षडचक्र, जप, अजपको
फिराउँ नित दिनमें स्वास ।।षडचक्र।।५।।
धुम्र वर्ण चैतन्य ब्रह्मजीको ढुंडि ढुंडि, प्रगटे आत्मा
पारब्रह्म स्वामीजीको खोजी करुँ ।।
प्रगटे आत्मा आत्मा पार ब्रह्म स्वामीजीको सहश्र दल,
कमलमें बास
छिन्न्ये पुन्न्ये जीवात्माको करुँ मै निशी दिन
ॐहा आस ।।षडचक्र।।६।।
दिन नहि वहा रात्री नहीं, देख अदेख रुछु नहि
खान पीन कछु नाही आफै आप नित्य उपासी
जप नहीं वहां, तप नहिं कहे स्वामी शशीधर
आफै अविनाशी ।।७।।

आत्मा परमात्माको गुरु ज्ञान विचारो षडचक्र स्वास खेलाई ।
श्रीगुरु मूर्ति चन्द्रमा सेवक नयन चकोर ।
अष्ट पहर निरखत रहो गुरु मूर्तिकी ओर ।।