राग निर्गुन / श्यामदिल दास
कबहु नगयो मेरो विषयेको बानी ।।अ।।
मट्टीके तत्त्व म् पवन के पानी ।।
उडी चले पुरुष मर्म नजानी ।।१।।
कमलकै पत्तामे लागी नही पानी ।।
हरि करुणासे पार मिलानी ।।२।।
विना काया छाया नाही, जीव विनाका ईश्वर नाही ।।३।।
जल थल भवनमे कारण नाही ।।
अंबर पारमे पवन मिलानी ।।४।।
दास श्यामदिल करुण कर स्वामी ।।
अलख निरंजनी अंतरज्यामी ।।५।।