भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राग बाह्रमास / अभयानन्द

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


वाजत अनहद नाद धुनी सुता आनन्द मेरो ।।ध्रु।।
काहे असार नाद मैं परवस्ती चैद भूवन सर्वत्रप्रकाश ।।
सोहि नद सुरमुनि धाये सनकादी ध्यान लगावेपरम पद पावे ।।वाजत.।।१।।
वीमु वादल श्रावण जाहा वरोषा लागे अमृत वरसत सहश्र अधारा ।।
अमृत पीवे संतसर थपेर नआवे येही संसार जीवनमुक्त होई ।।वाजत.।।२।।