भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राग मालश्री १ / निर्वाणानन्द

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जये देवी भैरवी गोरखनाथ दरसन दे हो भवानीये ।।
प्रथम देवीके उत्पन्न भैइ जनम भै ये कैलासय ।।
जोती जगमग चै हुँ वर देवीके चौसठी जोगीनी माईकरे ।।जये.।।१।।
सपना देषत गोरखनाथ भैषी देवी भनाईथे ।।
वीसासये भोग प्रसन्न देवी के वर दोये सब देसये ।।जये.।।२।।
देव वरन वर्दान पाईये सरुप नेपालमा रुप भये ।।
षाट सिंहासन जती लीजे सेव देसय ।।जये.।।३।।
देव औरनमाथ मकुड वदन सुर्जे उदाईये ।।
तपस्या जीती सरुप प्रगट तषत नेपालमा रुप भये ।।जये.।।४।।
सोरसी भीत मुकुट झलमल कुन्डल झलकतो कान ये
देव वरण श्रीरणबहादुर शाहा देव जस पाइये ।।जये.।।५।।