राग सामन्ती पंचगछिया / पंकज पराशर
रामचतुर मल्लिक आ अभय नारायण मल्लिक हमरा क्षमा करू
मोन नहि पाड़बाक लेल
आ हौ मांगैन तोरा सँ की क्षमा
तों तँ अल्हैया-बिलावल बनल छह हमरा मोन मे
मालकोश गबैत एकाकार भेल वाद्ययंत्रक ध्वनि मे
हमरा लेल तँ गबिते रहअ आ किनसाइत अपना लेल सेहो
मारबा केर मारक आलाप सँ विह्वलित तोहर मुखाकृति
आइ मोन पड़ैत अछि पंडित जसराज केँ सुनैत
तोहर स्वर-संपन्न कंठक भीमपलाशी
आ कोशीक कछेर मे साकार होइत रेगिस्तानक नाद-संपन्न टप्पा
राजधानीक कमानी सभागार मे
इत्रगंधित श्रोता सबहक नजरि सँ
जखन देखैत छी स्वयं केँ अवांछित
तँ बेर-बेर मोन पड़ैत अछि
मिथिलाक गंध सँ परिपूरित ठुमरी
एहि ठामक गंधहीन ठुमरीक पश्चात्
राग मारबा केर अमारक
आलाप अकूत धनक ताल मे निबद्ध
निकट दर्शनक अभ्यस्त हमरा
कहियो नहि सोहायल दूर-दर्शन
आ एहि अस्सी बखर्क वयस मे सिनेमा-तिनेमा आब की...
तोरा बूझल छह हमर सबटा रुचि आ व्यवहार
धिया-पूताक लेल आउटडेटेड हम पंचगछिया ड्योढ़ी छोड़ि
एतय स्टोर रूम मे रखैत छी अपन अशक्त शरीरक विष्णण दुर्दशा
आ तोरो मादे सोचैत आबि रहल छी एहि विशाल सभागार मे
आइ क्यो चीन्ह सकतह तोरा
पाँच सय टाकाक टिकट लऽ कए बैसल
विश्वमोहन भट्ट आ शुभा मुदगलक श्रोता?
तों जखन शरुह करैत रहह राग जैजैवन्ती
पंचम केर असीमित सीमांत धरि
तँ महाराज दड़िभंगोक ठोर पर आबि जाइत रहनि
आनन्दक मुस्की
आ एतय तँ हौ मांगैन
जखन-जखन दलमलित होइए पोकरण
आ मुस्कियाइत छथिन बुद्ध
तँ मियाँ तानसेन सेहो लाजेँ काठ भ जाइत हेताह
सदल-बल दिल्लीश्वरक एहि सभागार मे जखन गबैत छथिन
पंचम मे अपस्याँत एहि बुढ़ारियो मे भीमसेन जोशी
भैरवीक एहि समय मे जखन हम जागि गेल छी
तँ अपनहि घर सँ अबैत अछि निर्लज्ज फुसफुसाहटि
हौ मांगैन! कहिया आओत यमराजक बजाहटि?