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राजकीय गौरव से जाता आज तुम्हारा अस्थि फूल रथ / सुमित्रानंदन पंत

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राजकीय गौरव से जाता आज तुम्हारा अस्थि फूल रथ,
श्रद्धा मौन असंख्य दृगों से अंतिम दर्शन करता जन पथ!
हृदय स्तब्ध रह जाता क्षण भर, सागर को पी गया ताम्र घट?
घट घट में तुम समा गए, कहता विवेक फिर, हटा तिमिर पट!
बाँध रही गीले आँचल में गंगा पावन फूल ससंभ्रम,
भूत भूत में मिलें, प्रकृति क्रम : रहे तुम्हारे सँग न देह भ्रम!

अमर तुम्हारी आत्मा, चलती कोटि चरण धर जन में नूतन,
कोटि नयन नवयुग तोरण बन, मन ही मन करते अभिनंदन!
भूल क्षणिक भस्मांत स्वप्न यह, कोटि कोटि उर करते अनुभव
बापू नित्य रहेंगे जीवित भारत के जीवन में अभिनव!

आत्मज होते महापुरुष : वे अगणित तन कर लेते धारण,
मृत्यु द्वार कर पार, पुनर्जीवित हो, भू पर करते विचरण!
राजोचित सम्मान तुम्हें देता, युग सारथि, जन मन का रथ,
नव आत्मा बन उसे चलाओ, ज्योतित हो भावी जीवन पथ!