राजनीति का अटल हिमालय / बाबा बैद्यनाथ झा
राजनीति का अटल हिमालय
कैसे जग से चला गया
लगता है अब कालचक्र से
देश हमारा छला गया
जिसने झंझावातों से भी
अपना देश बचाया था
सोने की चिड़िया बन जाए
ऐसा भाव जगाया था
उस अखंड भारत का सपना
जिसने हमें दिखाया था
निज जीवन उत्सर्ग किया पुनि
ऐसा स्वप्न सजाया था
जाते-जाते पूर्ण विश्व में
दीप ज्ञान का जला गया
कभी-कभी अवतार ग्रहण कर
आते हैं कुछ लोग यहाँ
जहाँ गये ऐसे दिखते, हो
अपना घर परिवार वहाँ
निज कर्मों से दिशा दिखाकर
जाते हैं सुरलोक जहाँ
अटल बिहारी जैसा मानव
कहो मिलेंगे और कहाँ
कीचड़ के ही मध्य आपने
पुष्प कमल का खिला दिया
आज भाजपा विश्व क्षितिज पर
चमक रही कैसे बोलो
मजा लूटने वाले खुद को
न्याय-तुला पर अब तौलो
घर में छिपकर करे शत्रुता
भेद आज सबका खोलो
मन्त्र 'अटल' ने जो सिखलाया
कभी नहीं उससे डोलो
विश्वबंधुता का नारा दे
जग को जिसने रुला दिया