राजनेता का अधसच सपना / सोमदत्त
घास का बघनखा पहने मैं हिरणों के झुण्ड में
हिरणों के झुण्ड में घोड़े पर सवार शूर
घोड़े पर सवार किए हिरण गिरफ़्तार मैंने
हिरण गिरफ़्तार नन्हे मत-पेटी में बहार
गूँज रही जै जैकार
जै जैकार पर सवार मैं गया आम-सभा में
कैसा अद्भुत गज ! विराट जन-सागर में
विराट जन-सागर में पनडुब्बी-सा निर्भय पुरुष
निर्भय पुरुष के पाँवों तले लाखों चींटियों
चींटियों की आँखों में शक्कर के पहाड़
मची हुई मारामार
मारामार पे सवार मैं लौटा आम-सभा से
हार थे फूल थे गुलाल चापलूसी के
गुलाल चापलूसी के ख़ूनख़ोर जानवर
ख़ूनख़ोर जानवर की नसों में चमत्कार
चमत्कार चींटियों की ढीठ बर्दाश्तियों में
ढीठ बर्दाश्तियों की कोमल गादी पर
सोया खर्राटे ले मैं लौट आम-सभा से
नींद थी कुर्सी थी घुमाघुम वादे थे
घुमाघुम वादों में मरते-खपते लोग
मरते-खपते लोगों में यकायक अजीब जोश
अजब जोश जैसे हो जंगल में लगी आग
आग-आग हाँ मशाल, नत्थू-खैरों के हाथों में
डरा तो टूटी नींद
टूटी नींद पर बगटुट मैं भागा आम-सभा से ।