भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राजपूत खण्डकाव्य मंगलाचरण / भूपराम शर्मा भूप
Kavita Kosh से
अद्वितीय-अलौकिक-अद्भुत
अतुलित-आदृत-अभिज्ञानी
आर्यीर्चित-अति अभिनन्दित
अविजित-आद्या-अभिमानी
शुचि शौर्य-शक्ति-संयुक्ता
शुभ शस्य श्यामला सुजला
सन्तोष-शान्ति-सुख दायिनि
सुभगा-स्वर्गादपि सुफला
प्रिय प्रकृति-प्रिया, परिमल-प्रिय
पर्वत-पादप पुष्पार्चित
परमेश्वरि, पतित पावनी
प्रति पग पयोधि-प्रक्षालित
वर वीर-व्रती वरदानी-
बल-बुद्धि-विवेक विधात्री
कवि के प्रणाम स्वीकारो
जय भारत माँ! जय-पात्री
मैं 'राजपूत' में देखूं
रत-अविरत रूप तुम्हारा
वर दो यश सतत जननि का
गाये यह 'भूप' तुम्हारा