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राजभवन में कुत्ता / मनोज श्रीवास्तव
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    राजभवन में कुत्ता   
इस अभेद्य महल में 
रोटी-बोटी जोहते 
कहाँ से आया
यह जाहिल कुत्ता
न धोती, 
न कुर्ता, न टोपी  
नंग-धड़ंग
साढ़े तीन पैरों से
मटककर
अटककर 
लफड़ता-लिथड़ता 
क्या-क्या करने आया 
यह अपाहिज कुत्ता
गली-कूचों की आवारगी छोड़
देहाती दीवानगी छोड़ 
ऐय्याशगाह में 
आँख चौंधियाने 
क्या बनने आया
यह सड़क का कुत्ता
न हत्या, न बलात्कार
न कोई सियासी क़वायद
क्या किया है इसने
जो बैठेगा सभाकक्ष में 
भौंकेगा फैलाने को 
हिंसा-उन्माद
घसियारों से सहरियों तक, 
क्या यह बन पाएगा 
एक संभ्रांत कुत्ता
जाएगा अमरीका
कराएगा प्लास्टिक सर्जरी 
घुटनों की मरम्मत
नामर्दी का दवा-दारू
सीखेगा बिलायती जुबान
करेगा हवाई सैर,
यों ही बन पाएगा
राजभवन में भटककर आया
यह देशभक्त कुत्ता.
 
	
	

