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राजसूय / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान

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मान सपकार पाबैय गद गद होवैय रामा।
राजसूय यज्ञ करु बोलैय हो सांवलिया॥
सुदिन समुझि मुनि नारद के बात मानी।
सगरो न्योतवा पठाबैय हो सांवलिया॥
सब तर के राजा आबैय राजसूय देखे रामा।
अंग, बंग, कौशल आदि भूप हो सांवलिया॥
धृतराष्ट्र, भीषम, विदुर, कृपाचार रामा।
सौवो भैम आबैय दुरयोधन हो सांवलिया॥
देखी सुनी बड़ वेस कही घर लौटैय रामा।
युधिष्ठिर के नाम यश गाय हो सांवलिया॥