भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राज़े-दिल फ़ाश किया मैंने मिरी साक़ी पर / सौदा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राज़े-दिल फ़ाश किया मैंने मिरी साक़ी पर
कुछ न देखा मैं बजुज़ पर्दादरी शीशे में
दिल में जिस रंग से ’सौदा’ के गुज़रती है लहर
मौजै-मै कर न सके ज़ल्वागरी शीशे में