भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राजा आएँगे /नचिकेता
Kavita Kosh से
दीन-दलित के कीर्तन गाओ
राजा आएँगे।
तोरन-बन्दनवार सजाओ
राजा आएँगे।
उद्घाटन होगा
नूतन श्मशान घरों का
होगा मंगल-गान मूक,
अँधे, बहरों का
फरियादी को दूर भगाओ
राजा आएँगे।
माला लेकर
खड़े हुए तस्कर, अपराधी
बड़े सेठ के घर में है
बेटी की शादी
नयी प्रगति का जश्न मनाओ
राजा आएँगे।
बिन त्योहार मनाई जाएगी
दिवाली
खूब बहेगी महँगी मदिराओं
की नाली
जनहित के नगमे दुहराओ
राजा आएँगे।
छोड़ी जाएगी
आश्वासन की फुलझड़ियाँ
चीख़ों के होठों पर हों
गीतों की लड़ियाँ
कमलछाप झण्डा लहराओ
राजा आएँगे।