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राजा की नींद / मुकेश प्रत्यूष

राजा को कहां आती है नींद
नींद तो एक दु:स्वपन है राजा के लिए

दम मारने के लिए भी मिलती नहीं है फुरसत राजा को दिन में
सोच भी कहां पाता है राजा कुछ
यहां उद्घाटन, वहां व्याख्यान
यहां - वहां जाना
इससे - उससे मिलना
कभी हाथ मिलाते तो कभी गले लगाते खिंचवानी भी पड़ जाती हैं तस्वीरें
औपचारिकताओं में ही कट जाता है दिन

गहरे अंधकार ओढ़ जब सो जाती है दुनिया
राजा न केवल करता है जोड़-घटाव बल्कि गुणा-भाग भी