राजी और रज़ा / नज़ीर अकबराबादी
गर तुझ में ऐ परीरू! या मेहर या जफा है।
या रास्ती का मिलना, या सर ब सरदग़ा है॥
कर तू वही जो तेरे, अब दिल को खुश लगा है।
हम जानते नहीं हैं, कुछ नेको बद कि क्या है॥
राज़ी हैं हम उसी में जिसमें तेरी रज़ा है।
याँ यूं भी वाह वा है और बूँ भी वाह वा है॥
कुछ दिल में है तो दिल की, आबादियां भी कर ले।
ज़ोरो सितम की अपने उस्तादियाँ भी कर ले॥
वे दर्द है तो ज़ालिम, बेदर्दियाँ भी कर ले।
जल्लाद है तो काफिर, जल्लादियाँ भी कर ले॥
राज़ी हैं हम उसी में जिसमें तेरी रज़ा है।
याँ यूं भी वाह वा है और बूँ भी वाह वा है॥
अब दर पे अपने हमको रहने दे या उठा दे।
हम सब तरह से खुश हैं रख या हवा बता दे॥
आशिक हैं नर कलन्दर चाहे जहाँ बिठा दे।
या अर्श पर चढ़ा दे या खाक में मिला दे॥
राज़ी हैं हम उसी में जिसमें तेरी रज़ा है।
याँ यूं भी वाह वा है और बूँ भी वाह वा है॥
गर मेहर से बुलावे तो खू़ब जानते हैं।
और ज़ोर से डुबावे तो डूब जानते हैं॥
हम इस तरह भी तुझको मरगू़ब जानते हैं।
और उस तरह भी तुझ को महबूब जानते हैं॥
राज़ी हैं हम उसी में जिसमें तेरी रज़ा है।
याँ यूं भी वाह वा है और बूँ भी वाह वा है॥
एक दिन वह था कि हम पर थे इश्क के धड़ाके।
याँ मतलबों के हम पर, और गैर पर कड़ाके॥
अब गै़र पर करम है, और हम पे हैं झड़ाके।
हम सब तरह खुशी हैं, सुनता है ओ लड़ाके॥
राज़ी हैं हम उसी में जिसमें तेरी रज़ा है।
याँ यूं भी वाह वा है और बूँ भी वाह वा है॥
या दिल से अब खुशी हो, कर प्यार हमको प्यारे।
या तेग़ खींच ज़ालिम, टुकड़े उड़ा हमारे॥
जीता रखे तू हमको, या तन से सर उतारे।
अब तो ”नज़ीर“ आशिक कहते हैं यूँ पुकारे॥
राज़ी हैं हम उसी में जिसमें तेरी रज़ा है।
याँ यूं भी वाह वा है और बूँ भी वाह वा है॥