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राजू की जब छपी कहानी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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राजू की जब छपी कहानी
हुए बहुत खुश नाना नानी।
चोरी-चोरी लिखता था वह,
छपने कही भेज देता था।
छपी कहीं या, नहीं छपी है,
इसकी खोज ख़बर लेता था।
नहीं सफलता मिली उसे,
हर बार फिरा मेहनत पर पानी।
मामा बोले बड़ा अनाड़ी,
व्यर्थ समय जाया करता है।
अनगढ़ का लेखन! क्या लेखन,
कोई भला छापा करता है?
छपकर भी तो नहीं परिश्रम,
की मिलती है कौड़ी कानी।
पर नाना ने उसे हौसलों,
के नित नूतन पंख लगाये।
नए तरीके नई चलन के,
उड़ने के सब गुर सिखलाये।
आज मिली है उसे सफलता,
सिद्ध हुई नाना कि वाणी।
अब तो ख़ूब खूब लिखता है,
सहज सरलता से छप जाता।
उसका लिखा, देश का बच्चा,
बच्चा पढ़कर खुश हो जाता।
उसके लिखे गीत, घर-घर के,
बच्चों को हैं याद जुवानी।