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राजे गंगा किनारे एक तिरिया सू ठाड़ी अरज करे / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
राजे गंगा किनारे एक तिरिया सू ठाड़ी अरज करे
गंगे एक लहर हमें देऊ कि जा में डूब जाइयों
कै दुख री तोहे सासुरी सुसर को कै तेरे पिया परदेस
के दुख री तेरे मात पिता को के मां जाये बीर
काहे दुख डूबियो
ना दुख री मोहे सासुरी सुसर कऊ ना मेरे पिया परदेस
ना दुख री मोहे मात पिता को ना मा जाये बीर
सासु बहु कहि नाए बोले ननद भाभी ना कहे
ना हो राजे वे मोहे बांझ कहीं टेरै सो काटो गई